शुक्र चालीसा श्रद्धा, भक्ति और आस्था के साथ पाठ करने वालों के जीवन में प्रेम, आकर्षण, कला, ऐश्वर्य और वैभव का संचार करती है। इस चालीसा का नित्य पाठ करने से शुक्र दोषों का निवारण होता है, वैवाहिक जीवन में सामंजस्य आता है और भौतिक व आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है। शुक्र देवता दैत्यों के गुरु हैं और उन्हें “शुक्राचार्य” के नाम से भी जाना जाता है। इनकी कृपा से व्यक्ति जीवन में सुख, समृद्धि, वैवाहिक आनंद और रचनात्मक शक्तियों की प्राप्ति करता है। विशेषकर जिनकी कुंडली में शुक्र कमजोर हो या जिनके जीवन में वैवाहिक व प्रेम संबंधी बाधाएं हों, उनके लिए यह चालीसा अत्यंत फलदायक है।
॥दोहा॥
श्री गणपति गुरु गउ़रि, शंकर हनुमत कीन्ह।
बिनवउं शुभ फल देन हरि, मुद मंगल दीन॥
॥चौपाई॥
जयति जयति शुक्र देव दयाला।
करत सदा जनप्रतिपाला॥
श्वेताम्बर, श्वेत वारन, शोभित।
मुख मंद, चंदन हिय लोभित॥
सुन्दर रत्नजटित आभूषण।
प्रियहिं मधुर, शीतल सुवासण॥
सप्त भुज, सोभा निधि लावण्य।
करत सदा जन, मंगल कान्य॥
मंगलमय, सुख सदा सवारथ।
दीनदयालु, कृपा निधि पारथ॥
शुभ्र स्वच्छ, गंगा जल जैसा।
दर्शन से, हरषाय मनैसा॥
त्रिभुवन, महा मंगल कारी।
दीनन हित, कृपा निधि सारी॥
देव दानव, ऋषि मुनि भक्तन।
कष्ट मिटावन, भंजन जगतन॥
मोहबारी, मनहर हियरा।
सर्व विधि सुख, सौख्य फुलारा॥
करत क्रोध, चपल भुज धारी।
कष्ट निवारण, संत दुखारी॥
शुभ्र वर्ण, तनु मंद सुहाना।
कष्ट मिटावन, हर्षित नाना॥
दुष्ट हरण, सुजनन हितकारी।
सर्व बाधा, निवारण न्यारी॥
सुर पतिहिं, प्रभु कृपा विलासिन।
कष्ट निवारण, शुभ्र सुवासिन॥
वेद पुरान, पठत जन स्वामी।
मनहरण, मोहबारी कामी॥
सप्त भुज, रत्नजटित माला।
कष्ट निवारण, शुभ फलशाला॥
सुख रक्षक, सर्वसुख दाता।
सर्व कामना, फल दाता॥
मानव कृत, पाप हरे प्रभु।
सर्व बाधा, निवारण रघु॥
रोग निवारण, दुख हरणकर।
सर्व विधि, शुभ फल देनेकर॥
नमन सकल, सुर नर मुनि करते।
व्रत उपासक, दुख हरण करते॥
शरणागत, कृपा निधि सोइ।
जन रक्षक, मोहे दुख होई॥
शुद्ध भाव, से जो नित गावै।
सर्व सुख, परम पद पावै॥
वृन्दावन में, मंदिर निर्मित।
जहां शुद्ध भक्तन, सदा शरणागत॥
संत जनन के, कष्ट मिटावत।
भवबंधन से, सहज छुड़ावत॥
सकल कामना, पूर्ण करावत।
मोहभंग, भवसागर तरावत॥
जयति जयति, कृपानिधान।
शुक्र देव, श्री विश्व विद्धान॥
प्रणवउं, नाथ सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥
सुर मुनि जनन, अति प्रिय स्वामी।
शुभ्र वर्ण, रूप मनहारी॥
जय जय जय, श्री शुक्र दयाला।
करहुं कृपा, भव बंधन ताला॥
ध्यान धरत, जन होउं सुखारी।
कृपा दृष्टि, शांति हितकारी॥
अधम कायर, सुबुद्धि सुधारो।
मोह निवारण, कष्ट निवारो॥
लक्ष्मीपति, शुभ फल दाता।
संतजनन, दुख भंजन राता॥
जय जय जय, कृपा निधि शुक्र।
करहुं कृपा, हरहुं सब दु:ख॥
प्रणवउं नाथ, सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥
रूप तेज बल, संपन्न सदा।
शांति दायक, जन सुख दाता॥
त्रिभुवन में, मंगल करतू।
सर्व बाधा, हरता शुकृ॥
मानव कृत, पाप हरे प्रभु।
सर्व बाधा, निवारण रघु॥
रोग निवारण, दुख हरणकर।
सर्व विधि, शुभ फल देनेकर॥
प्रणवउं नाथ, सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥
ध्यान धरत, जन होउं सुखारी।
कृपा दृष्टि, शांति हितकारी॥
जय जय जय, कृपा निधि शुक्र।
करहुं कृपा, हरहुं सब दु:ख॥
॥दोहा॥
नमो नमो श्री शुक्र सुहावे।
सर्व बाधा, कष्ट मिटावे॥
यह चालीसा, जो नित गावै।
सुख संपत्ति, परम पद पावै॥
शुक्र चालीसा करने के लाभ –
- अगर कुंडली में शुक्र कमजोर हो, नीच का हो या अशुभ भाव में स्थित हो, तो शुक्र चालीसा का नियमित पाठ करने से दोष दूर होते हैं।
- यह चालीसा वैवाहिक जीवन में प्रेम, समझदारी और संतुलन बनाए रखने में सहायक है। दाम्पत्य जीवन की समस्याओं को दूर करती है। शुक्र कला, संगीत, फैशन, सौंदर्य और रचनात्मकता से जुड़ा हुआ ग्रह है। इस चालीसा का प्रभाव व्यक्ति के आकर्षण और रचनात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है।
- शुक्र प्रेम का कारक ग्रह है। इसका पाठ प्रेम संबंधों में मधुरता, आपसी विश्वास और स्थायित्व लाता है।
- शुक्र वैभव और ऐश्वर्य का प्रतीक है। इसका स्मरण व्यक्ति को धन, वाहन, भवन, वस्त्र, आभूषण आदि की प्राप्ति में मदद करता है।
- शुक्र मानसिक संतुलन, कोमलता और सहनशीलता प्रदान करता है। इसका स्मरण मन को शांत और प्रेममय बनाए रखता है।